संघ का विस्तार क्षेत्र

संघ का कार्य क्षेत्र क्षात्र वृति है जो किसी प्रकार की भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध नहीं है लेकिन क्यो कि संघ का कार्य संसार के वर्तमान प्रवाह से विपरीत चलने वाला उध्र्वगामी कार्य है एवं संसाधन सीमित हैं अतः संघ अपने जन्म स्थान राजस्थान एवं पडौसी राज्य गुजरात में ही भली प्रकार अपना विस्तार कर पाया है। अन्य क्षेत्रों उतरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि विभिन्न राज्यों में भी प्रयास चल रहे है एवं संघ के शिविरादि कार्यक्रम हुए है। वर्तमान में इस ओर गंभीरता से प्रयास हो रहे है एवं इन राज्यों में भी प्रतिवर्ष संघ के कार्यक्रम होने लगे हैं। दक्षिण भारत में भी प्रवासी राजस्थानियों एवं गुजराती बंधुओं के प्रयास से कार्य प्रारम्भ होने के आसार बने हैं। माननीय संघ प्रमुख जी एवं सहयोगियों की यात्राएँ इन क्षेत्रों में हुई हैं। पडौसी देश मारीशस में भी अनेक क्षत्रिय बंधु अंग्रेजों के समय जाकर बसे थे, उनके बुलावे पर माननीय संघप्रमुख जी वहाँ भी प्रवास करके आये हैं।