सम्मान और प्रेम की अधिकारिणी है स्त्री – संघप्रमुख श्री

क्षत्रिय युवक संघ का कार्य संस्कार निर्माण का कार्य है और इस कार्य में परिवार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इकाई है। परिवार का प्रारंभ दाम्पत्य जीवन के प्रारंभ के साथ होता है। विवाह के समय स्त्री का त्याग पुरुष की अपेक्षा प्रत्येक दृष्टि से अधिक है। वह अपना परिवार, गांव, रिश्ते-नाते सभी छोड़कर आती है और उसके पश्चात भी वह पति, बच्चों व अन्य परिजनों की सुख-सुविधा हेतु अपने सुख का त्याग करके परिवार को जोड़कर रखती है। स्वयं पीड़ा सहकर पति के वंश को आगे बढ़ाती है। इसीलिए वह सभी के सम्मान, प्रेम और देखभाल की अधिकारिणी है। यह संदेश माननीय संघप्रमुख श्री ने बाड़मेर स्थित आलोक आश्रम के प्रांगण में आयोजित दम्पती शिविर के दौरान उपस्थित दम्पतियों से कही। 2 फरवरी से प्रारम्भ शिविर का समापन 4 फरवरी को हुआ, जिसमें लगभग 55 दम्पती ने भाग लिया। शिविर के दूसरे दिन बाड़मेर स्थित परमहंस आश्रम से स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज के शिष्य स्वामी अकेला महाराज तथा लालदेव महाराज का सान्निध्य भी शिविरार्थियों को प्राप्त हुआ। उन्होंने सभी समाजों के साथ प्रेम व समरसता के साथ रहने तथा एक परमात्मा में विश्वास रखकर इन्द्रिय संयम तथा 'ओम' के नियमित व निरंतर जप की बात कही।