किसी भी कार्य का मुल्यांकन एक पक्ष से ही देखने पर नहीं किया जा सकता। उसके लिए उसके सभी पहलुओं पर पूर्ण विचार किया जाए और उसको नजदीक से स्वयं देखा जाए। विरोध के एक पक्षीय दृष्टिकोण से देखकर संघ के बारे में जिस प्रकार से आलोचना की जा सकती है उसे मनोविनोद के रुप में इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। संघ की व्यवहारिक व मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली तथा यहां की आत्मीयता व निश्छल प्रेम अपने संपर्क में रहने वाले को कैसे अपना बना लेते हैं, इसके दर्शन इस पुस्तक में होते हैं। पूज्य तनसिंह जी ने इसे लेखमाला के रुप में ’संघशक्ति’ पत्रिका में फरवरी 1963 से दिसंबर 1964 तक प्रकाशित करवाया जिन्हें संकलित कर 1990 में पुस्तक का स्वरुप दिया गया।