ग्रिगेरियन कैलेंडर के अनुसार 13 अगस्त को मनी दुर्गादास जयन्ती
वीर दुर्गादास राठौड़ की 379वीं जयन्ती ग्रिगेरियन कैलेन्डर के अनुसार 13 अगस्त को विभिन्न स्थानों पर समारोह पूर्वक मनाई गई। जालोर जिले की सायला तहसील के जीवाणा गाँव के बायोसा मंदिर में श्री क्षत्रिय युवक संघ के तत्वावधान में जयन्ती समारोह आयोजित हुआ, जिसमें क्षेत्र के सैंकड़ो महिला-पुरुषों ने सम्मिलित होकर दुर्गादास जी को स्मरण किया। माल्यार्पण, दीप प्रज्ज्वलन, मंगलाचरण एवं प्रार्थना के पश्चात कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक श्री देवी सिंह जी माडपुरा ने कहा कि दुर्गादास जी ने क्षात्र धर्म का पालन करते हुए मानव समुदाय के सामने त्याग एवं तपस्या के आधार पर जीवन निर्माण का आदर्श रखा है। ईश्वर एवं उनके द्वारा प्रदत्त कर्तव्य के पालन में हमारी निष्ठा के कारण ही हम युगों से धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र के रक्षक रहे है। वरिया मठ के नारायण भारती जी महाराज ने दुर्गादास जी एवं पूज्य तनसिंह जी की तुलना करते हुए कहा कि दोनों ही महापुरुषों ने गीता में वर्णित क्षात्र-धर्म का पूर्णतः पालन करते हुए हमारे सामने अभावों एवं संघर्षों में भी स्वधर्म से न डिगने का आदर्श रखा। कार्यक्रम को कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ. समरजीत सिंह, जालोर उपखंड अधिकारी श्री राजेंद्र सिंह सिसोदिया, जिला परिषद् सदस्य श्री मंगल सिंह सिराणा एवं संघ के मंडल प्रमुख दीप सिंह दूदवा ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का सञ्चालन श्री गणपत सिंह भवराणी ने किया। संभाग प्रमुख श्री अर्जुन सिंह देलदरी ने तनसिंह जी रचित 'क्षिप्रा के तीर' का पठन किया। कार्यक्रम में भवानी सिंह जी बाकरा, आहोर प्रधान राजेश्वरी कँवर, पोषाणा सरपंच परबत सिंह राठौड़, भीम सिंह बावतरा, छैल सिंह, उत्तम सिंह जीवाणा, विजय सिंह दूदवा भवानी सिंह भटाणा, राजवीर सिंह नोसरा सहित अनेकों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। बाड़मेर संभाग के गुड़ामालानी प्रान्त के बूठ जैतमाल गाँव में 13 अगस्त को दुर्गादास जयंती मनाई गई। कार्यक्रम से पूर्व यज्ञ किया गया, इसके पश्चात मंगलाचरण एवं ध्वजारोहण के साथ कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। पूज्य श्री तनसिंह जी द्वारा रचित सहगीत 'मेरे वीर दुर्गादास लौट के आ रे' के साथ दुर्गादास जी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। प्रान्त प्रमुख श्री गणपत सिंह बूठ ने कहा कि दुर्गादास जी की ही तरह गीता में वर्णित क्षत्रिय के सातों गुणों को हमें धारण करना चाहिए। वर्तमान में इन गुणों को समझने एवं इनके अभ्यास का श्रेष्ठतम मार्ग श्री क्षत्रिय युवक संघ के रूप में हमारे सामने है। श्री हरी सिंह उण्डखा द्वारा 'क्षिप्रा के तीर' का पठन किया गया। कार्यक्रम में सर्वश्री स्वरुप सिंह खारी, नरपत सिंह, जालम सिंह, भीम सिंह, रणवीर सिंह, विक्रम सिंह, राय सिंह उण्डखा, जोगराज सिंह, स्वरुप सिंह, धन सिंह, सरदार सिंह, राम सिंह, हिन्दू सिंह, जसवंत सिंह, मल्ल सिंह बूठ आदि सम्मिलित थे। समदड़ी के टाउनहाॅल में राजपुत सेवा समिति के तत्वावधान में दुर्गादास जयन्ती का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का प्रारम्भ दुर्गादासजी की तस्वीर के सामने दीप प्रज्ज्वलन से हुआ, तत्पश्चात वीर शिरोमणी को पुष्पाजंलि दी गई। अमरसिंह जी अकली द्वारा पूज्य तनसिंह जी द्वारा रचित 'क्षिप्रा के तीर' का वाचन किया गया। श्री राणसिंह टापरा ने दुर्गादासजी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला। सभी की भावनाओं से सहमति जताते हुए सिवाणा विधायक श्री हमीर सिंह जी ने कस्बे में दुर्गादास जी की प्रतिमा स्थापित करवाने का आश्वासन दिया। पूर्व विधायक श्री कानसिंह कोटड़ी, श्रीमाली पटेल, डाॅ. गणपतसिंह जी राठौड़, ठाकुर नटवरकरणजी तथा तहसीलदार श्री सुरेन्द्रसिंह खंगारोत ने भी समारोह को सम्बोधित किया। मंच संचालन श्री हुकमसिंह अजीत ने किया । कार्यक्रम में समदड़ी तथा आसपास के गाँवों, कांकराला, सिवाणा, बालोतरा आदि क्षेत्रों से बड़ी संख्या में समाजबंधुओं ने भाग लिया। जैतारण स्थित राजपूत सभा भवन में दुर्गादास जी की जयन्ती वीर दुर्गादास राठौड़ क्षत्रिय सभा जैतारण-रायपुर के तत्वावधान में मनाई गई। समारोह की अध्यक्षता श्री मानवजीत सिंह रायपुर ने की। श्री क्षत्रिय युवक संघ के प्रतिनिधि के रूप में श्री शिव सिंह ढूंढा उपस्थित रहे। कवि हिम्मतसिंह कविया ने दुर्गादास जी के शौर्य एवं चरित्र की महानता का वर्णन अपनी ओजस्वी कविताओं से किया। इस अवसर पर सर्व श्री भगवतसिंह मोहरा, भगवतसिंह निमाज, अमरजीत सिंह राठौड़, चैनसिंह बलाड़ा, राजेंद्र सिंह डिगरना, मोहब्बत सिंह निम्बोल, हरजीतसिंह निमाज, ओंकार सिंह निम्बेडाकलां, श्यामसिंह आकोदिया सहित समाज के अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे। दिल्ली के छतरपुर स्थित मार्कंडेय भवन में दुर्गादास जी की जयंती के अवसर पर स्नेहमिलन रखा गया, जिसमें राजस्थान एवं उत्तरप्रदेश के राजपूत बंधुओं ने भाग लिया। मंगलाचरण एवं प्रार्थना के पश्चात 'क्षिप्रा के तीर' का वाचन किया गया। इसके पश्चात दिल्ली में नई शाखाओं के प्रारम्भ एवं शिविर के आयोजन पर चर्चा हुई।