आंसू नहीं अंगारे लेकर चलें
"विदा के क्षण वे कठिन क्षण होते है जब आत्मीयता तरल होकर प्रकट हो जाती है। ये जो हमारी आँखों से आंसू बहे है, हमारी युगों की पहचान के प्रमाण है। यह हमारी तन सिंह जी के प्रति, संघ के प्रति कृतज्ञता है। तन सिंह जी ने जो बात कही, वही मैं भी कहता हूँ- काँधा बिन भाईड़ा म्हारौ भार उललसी रे। तन सिंह जी ने हम पर इतना विश्वास जताया है, हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी निष्ठा से उस विश्वास को पुष्ट करें। उनके बताए मार्ग पर चलें और सच्चे क्षत्रिय बनें। संसार में सब तरफ जो अनाचार हो रहा है, उसे हमारे बिना कौन रोकेगा? हमें क्रोध आना चाहिए, आवेश आना चाहिए, इस अनाचार को देखकर। आप यहाँ से आँखों में आँसू नहीं अंगारे लेकर जाएं। यह कौम हमारी माता है। हम भाग्यवान है की संसार की महानतम कौम में भगवान् ने हमें जन्म दिया है। अपने किसी भी कर्म से इस कौम पर दाग न लगने दे। हम सब अपने कर्तव्य पालन में रत होकर संसार में क्षय का विनाश करें और सत का रक्षण करें। इसी प्रार्थना के साथ मैं आपको पूज्य तन सिंह जी और श्री क्षत्रिय युवक संघ की ओर से विदा देता हूँ।" माननीय संघप्रमुख श्री ने पुष्कर में चल रहे उच्च प्रशिक्षण शिविर के अंतिम दिन आज विदा के कार्यक्रम में स्वयंसेवको को यह सन्देश दिया। ग्यारह दिनों तक सांसारिक व्यामोहों से दूर रहकर साधना क्षेत्र में कदम बढ़ाते हुए जो प्रेम व विश्वास अनायास ही निर्मित हुआ, वह आज विदा के कार्यक्रम में अश्रुधाराओं के रूप में प्रकट हुआ। स्वागत के समय संघप्रमुख श्री ने कहा था कि यह शिविर जागने के लिए है और विदा के समय बहें आँसुओं ने भाव क्षेत्र की जागृति का प्रमाण तो दे ही दिया। अपने कण-कण को इसी तरह जागृत करने के संकल्प के साथ 400 से अधिक स्वयंसेवको ने शिविर स्थल से मधुर स्मृतियों के साथ विदा ली- आगामी शिविरों में फिर मिलने के लिए।