इतिहास से ही बनता है चरित्र – संरक्षक श्री
(उच्च प्रशिक्षण शिविर का नवां दिन) चरित्र इतिहास से और पूर्वकाल के संस्कारों से ही बनता है। शौर्य, वीरता, तेज जैसे गुण पीढ़ियों से जिस कौम के रक्त में चलते आए हैं उन्होंने ही इतिहास रचा। चरित्र का अर्थ है कि हमारी सभी इंद्रियां हमारे नियंत्रण में रहकर व्यवहार करें। हमारे चरित्र पर कोई आक्षेप लगाता है तो हम को नहीं सुहाता है, हम विरोध भी करते हैं किंतु मेरी ऐसी मान्यता है कि हमारे चरित्र में कोई ना कोई कमी आई है। मध्यकाल, जिसे राजपूत काल भी कहा जाता है, में हम युद्ध कौशल में महाभारत से भी आगे निकल गए। शीश कटने के बाद भी लड़ना, जिस पति का मुख भी नहीं देखा उसके साथ सती होना, ऐसा पहले कभी इतिहास में नहीं हुआ। यह विशेषताएं तो बहुत बढ़ीं लेकिन दूसरी तरफ कमियां भी बहुत आई। हमारे युद्ध का उद्देश्य बहुत छोटा पड़ गया। हम जमीन, स्त्री या वैरभाव के लिए लड़े लेकिन संगठित होकर के बाहरी दुश्मन, जो देश पर आक्रमण कर रहा था, का सामना नहीं किया। यहां हमसे अनेक बार चूक हुई। यह चरित्र की कमी ही कही जा सकती है। दूसरी बात है संस्कार की। हमारे यहां 16 संस्कार की पद्धति रही है। बच्चे के गर्भ में आने से पहले ही संस्कार की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। मातृपक्ष और पितृपक्ष का व्यवहार कैसा रहा है उनका इतिहास, चरित्र कैसा रहा है वही संतान के अंदर संस्कार बनकर आते हैं। जो अन्न हम खाते हैं, जैसा हमारे आस पास का वातावरण है, उन सबका हमारे चरित्र पर प्रभाव पड़ता है। जरा सी सावधानी हटी तो दुर्घटना घट सकती है। यहां इस शिविर में सघन प्रयास किया जा रहा है कि प्रतिक्षण सावधानी रखी जाय। लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष है। जन्मों लग सकते हैं हमें संस्कारित होने में, इसलिए परमेश्वर से सदैव धैर्य की प्रार्थना करते रहें। उपरोक्त बातें श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक माननीय श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर ने उच्च प्रशिक्षण शिविर के नवें दिन 27 मई को अपने प्रभात संदेश में कही। अर्थबोध में पूज्य तनसिंह जी रचित सहगीत ’कहो चुकाई कीमत किसने’ पर चर्चा की गई। बौद्धिक सत्र में ’इतिहास’ विषय पर प्रवचन हुआ। माननीय महावीर सिंह जी सरवड़ी द्वारा ’शिक्षक की समस्याएं’ पुस्तक पर चर्चा की गई। #ShriKYS