क्षत्रिय अपना उत्तरदायित्व समझें

"भारत के मनीषियों ने मानव मन, उसके संवेगों, प्रवृतियों स्वाभाव आदि के आधार पर पूर्णत: वैज्ञानिक वर्ण व्यवस्था को अपनाया था जो ईश्वरीय विधान के अनुरूप थी| युग के प्रभाव में आकर चारों वर्णों ने अपना उत्तरदायित्व आज भुला दिया है जिससे यह व्यवस्था छिन्न - भिन्न हो गई है| चूँकि क्षत्रिय का अनुसरण समाज सदैव करता है, अत: संसार में ईश्वरीय विधान के अनुरूप व्यवस्था निर्मित करना क्षत्रिय का उत्तरदायित्व है| इसके लिए क्षत्रिय का पुन: कर्त्तव्य-पथ पर आरूढ़ होना समय की मांग है| इस माँग को पूरा करने का कार्य श्री क्षत्रिय युवक संघ कर रहा है|" उच्च प्रशिक्षण शिविर के सातवें दिन श्री सांवल सिंह सनावड़ा ने बौद्धिक प्रवचन में यें बातें कही| 'साधक की समस्याएँ' पुस्तक पर चर्चा के दौरान श्री महावीर सिंह सरवड़ी ने बताया कि यदि साधना द्वारा हम अपनी आस्था, विश्वास और निष्ठां को दृढ़ नहीं बनाएंगे तो हमारी बुद्धि विकृत होकर हमें निष्क्रिय या विरोधी भी बना सकती है| इन्द्रियानुभूति के परे के क्षेत्र में तर्क बुद्धि नहीं अनुभव ही प्रभाव का कार्य करता है| अत: तत्वदर्शी महापुरुष के निर्देशन में साधना क्षेत्र में निष्ठां एवं श्रद्धा से लग जाना चाहिए|