गीता पर आधारित है संघ की संपूर्ण विचारधारा – संरक्षक श्री
श्रीमद्भगवद्गीता के 18वें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कर्म के होने के लिए पांच कारण बताए गए हैं। प्रथम कारण है - अधिष्ठान अर्थात क्षेत्र। श्री क्षत्रिय युवक संघ के स्वयंसेवक के लिए समाज ही अधिष्ठान अर्थात कार्यक्षेत्र है। दूसरा है कर्त्ता और तीसरा है करण अर्थात साधन। स्वयंसेवक के रूप में हम ही कर्त्ता है और हमारे पास साधन के रूप में शरीर, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार हैं जिनके माध्यम से कर्म घटित होता है। चौथा है विविध प्रकार की चेष्टाएं अर्थात प्रयत्न। हम प्रयत्नशील हैं इसीलिए यहां इस शिविर में आए हैं। पांचवा कारण है दैव अर्थात प्रारब्ध। पूर्व जन्मों में किए हुए कर्मों के फल से प्रारब्ध का निर्माण होता है, यह हमारे हाथ में नहीं है। प्रारब्ध यदि पक्ष में ना हो तो भी कर्म नहीं होता। हमारा जन्म भारत जैसे देश में हुआ है, क्षत्रिय कुल में हुआ है और हमें श्री क्षत्रिय युवक संघ में आने का अवसर भी प्राप्त हुआ है तो इसका अर्थ है कि हमारा प्रारब्ध भी हमारे अनुकूल हैं। इस प्रकार हमारे पास कर्म के लिए आवश्यक सभी पांच कारण उपस्थित हैं। हमें केवल यह दृढ़ निश्चय करना है कि यह काम हमें करना ही है। 'एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय' के सिद्धांत पर हम चलते रहे तो हम जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। श्री क्षत्रिय युवक संघ की संपूर्ण विचारधारा श्रीमद्भगवद्गीता पर ही आधारित है इसलिए हमें निश्चय पूर्वक इस मार्ग पर बढ़ते रहना चाहिए। उपरोक्त संदेश माननीय संरक्षक श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर ने आलोक आश्रम, बाड़मेर में चल रहे उच्च प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन 21 मई, 2022 को अपने प्रभात संदेश में दिया।