जो पाया उसे बांटें- भादला
"उत्पत्ति, स्थिति और लय- यह सृष्टि का निश्चित क्रम है। इस शिविर के आयोजकों का यह संकल्प था कि आप 7 दिवस तक यहाँ निवास करके श्री क्षत्रिय युवक संघ द्वारा प्रदत्त शिक्षा को ग्रहण करें और इस धरा को पवित्र करें। वह संकल्प ही इस शिविर की उत्पत्ति थी। 25 तारीख को आप सब के यहाँ आकर अपने आपको व्यवस्था में बाँधने से स्थिति बनी। आज उसी सृजन का पटाक्षेप है, लय की बेला है। आज विदाई का दिन है। यह विदा शब्द ही ऐसा है कि सुनते ही ह्रदय में वेदना उत्पन्न होती है। कोई भी विदा नहीं होना चाहता, परन्तु उत्पत्ति, स्थिति और लय सृष्टि का नियम है और हम भी इस नियम के आधीन हैं। इस शिविर में जो तत्व लय को प्राप्त हुए है, उनमे आपकी अनेकता भी है। आप सब अनेक होकर एक हो चुकी है। एक ही श्रृंखला की कड़ियाँ बन गई हैं। एक ही लक्ष्य और मार्ग को 7 दिन की साधना में आपने अपनाया है। 'समानी वः आकूति' की धारणा के अनुरूप हमने हमारे विचार, मन, बुद्धि और संकल्प को एकरूप बनाने का अभ्यास किया। यहाँ 7 दिन तक शक्ति की हमने उपासना की है, शक्ति का यह उपार्जन यहाँ से जाने के बाद भी चलता रहे। समाज में जहाँ भी बिखराव हो, उसे आप रोकें। संघ ने, तन सिंह जी ने अपने ह्रदय की व्यथा आपको सौंपी है, आप पर भरोसा किया है। इसे याद रखना है और जो कुछ यहाँ पाया है, वह आगे बाँटना है। जहाँ अँधेरा है, वहाँ प्रकाश फैलाएँ, जहाँ अज्ञान हों वहाँ ज्ञान का प्रसार करें। बाहर का वातावरण विपरीत है, पर आपको याद रखना है कि मैं संघ की स्वयंसेविका हूँ। यह दृढ संकल्प आपको आपके पथ से कभी विचलित नहीं होने देगा। इस आशा के साथ कि आप संघ की आशाओं पर खरी उतरेंगी, माननीय संघप्रमुख श्री की ओर से मैं आपको विदा देता हूँ - ऐसे मेलों में फिर से आने के लिए।" उपरोक्त सन्देश श्री क्षत्रिय युवक संघ के बालिका उच्च प्रशिक्षण शिविर के अंतिम दिन आज शिविर संचालक श्री जोरावर सिंह भादला ने बालिकाओं को विदा देते हुए दिया। सप्त दिवसीय यह शिविर 25 मई को प्रारम्भ हुआ था, जिसमें देश भर से लगभग 340 बालिकाओं ने क्षात्र-धर्म पालन का अभ्यास किया। अपने परिवार, अपनी जाति, अपने समाज, अपने राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवता के हित में अपने जीवन-पुष्प में सौरभ भरने की साधना की। विपरित परिस्थितियों में भी अनुकूलता का सृजन करके संघ को जीवन में उतारने के संकल्प के साथ सभी ने आगामी शिविरों में फिर मिलने के लिए विदा ली।