भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण सूत्र है कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद- संघप्रमुख श्री
"माता-पिता हमारे इस संसार में आने के साधन मात्र है, वे हमारे अस्तित्व के मूल स्रोत नहीं है। इस बात को समझते हुए हमें अपने वास्तविक स्वरुप को पहचानने का प्रयास करना चाहिए। माता-पिता द्वारा मिला यह शरीर प्रकृति से बना है, अतः इस संसार की सेवा में इसे नियोजित करना चाहिए। किन्तु हमारी आत्मा, परमात्मा का अंश है, अतः उनसे मिलान में ही इसका कल्याण है। हमारा यह सामाजिक कार्य भी ईश्वर की ही सेवा है, उनसे मिलान का मार्ग है। आवश्यकता केवल इतनी है कि भगवान का स्मरण सदा बना रहे। यह कार्य करते हुए हमें दृढ विश्वास होना चाहिए कि किया हुआ कर्म कभी व्यर्थ नहीं होता और जो कार्य एक जन्म में पूरा नहीं हो पाता, उसे पुनः जन्म लेकर भी हम पूरा करेंगे। यह कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद भारतीय दर्शन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। इसे समझे बिना भारतीय दर्शन समझ नहीं आ सकता, और न ही संघ का दर्शन समझ आ सकेगा।" उपरोक्त सन्देश माननीय संघप्रमुख श्री ने चितरा, डूंगरपुर स्थित महाराज कनकनन्दी जी के आश्रम में 14.11.17 को आयोजित कार्यक्रम में दिया। माननीय संघप्रमुख श्री अपने मेवाड़-वागड़ प्रवास के दौरान महाराज से मिलने पधारे थे, उसी के उपलक्ष्य में यह कार्यक्रम रखा गया था। इससे पूर्व 13.11.17 को डूंगरपुर के आशपुर गाँव में विश्वकर्मा मंदिर में एक स्नेहमिलन भी रखा गया, जहाँ समाजबंधुओं को माननीय संघप्रमुख श्री का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने सभी से गीता में वर्णित क्षत्रिय के सात गुणों के बारे में बताते हुए कहा कि क्षत्रिय के लिए ईश्वर-भाव रखना आवश्यक है, अन्यथा हमारी शक्ति आसुरी रूप ले लेगी। इस दौरान क्षेत्र के समाजबंधुओं ने संघ की कार्यप्रणाली को देखा व समझा और इस कार्य को क्षेत्र में और विस्तार देने का आग्रह किया।