समस्त धन ईश्वर का है – संरक्षक श्री

(उच्च प्रशिक्षण शिविर का आठवां दिन) भारतीय मनीषियों ने सबसे पहले जो खोज की, अपने ज्ञान, ध्यान और तपस्या से उनके जो अनुभव में उतरा, उन्हें वेद कहते हैं। उन्हीं वेदों का सूक्ष्म रूप उपनिषद है। उनमें सबसे पहला और सबसे छोटा ईशोपनिषद है। उसकी प्रार्थना में बताया गया है कि यह भी सत्य है और वह भी सत्य है अर्थात जो दिखाई देता है, यह जो संसार, सृष्टि है जिसे निस्सार बताया जाता है यह भी उपनिषद की दृष्टि में सत्य है। वह का अर्थ है परमपिता, परमेश्वर जो पूर्ण है और उसमें से पूर्ण को निकाल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है। वह भी सत्य है। ईशोपनिषद के सबसे पहले श्लोक में उस बात को कहा है जो परम सत्य है - "ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌॥" इसका अर्थ है कि जो कुछ ईश्वर द्वारा आच्छादित है, ईश्वर में जो समाहित है, जिसमें ईश्वर समाहित है, संसार में जो कुछ भी है उसे अपना मत समझो। वह सब भगवान का है। यह सब भगवान की माया है इस माया पर यदि अधिकार जताने की चेष्टा की तो अहंकार आ जाएगा, अहंकार से मद और मद से क्रोध उत्पन्न होगा। इस प्रकार के विकारों का एक बड़ा परिवार हैं जिसमें मनुष्य फंस जाता है। इसलिए इस श्लोक में कहा गया है कि गिद्ध मत बनो। यह जो धन, पत्नी, पुत्र, सत्ता आदि हैं यह सब भगवान का है इसलिए इनका सदुपयोग करें इन पर अधिकार ना जताएं। उपरोक्त बात माननीय संरक्षक श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर ने उच्च प्रशिक्षण शिविर के आठवें दिन 26 मई को अपने प्रभात संदेश में कही। वरिष्ठ स्वयंसेवक माननीय महावीर सिंह जी सरवडी द्वारा पूज्य तनसिंह जी रचित पुस्तक ’शिक्षक की समस्याएं’ पुस्तक पर चर्चा की गई। अर्थबोध में पूज्य तनसिंह जी रचित ’अरमानों की दुनिया सदा जले’ सहगीत का सरलार्थ किया गया। बौद्धिक प्रवचन में ’संस्कृति’ विषय पर प्रवचन दिया गया। #ShriKYS