समाज ही है श्री क्षत्रिय युवक संघ का अधिष्ठान – संरक्षक श्री
(उच्च प्रशिक्षण शिविर का पांचवा दिन) गीता में वर्णित कर्म के पांच कारणों में जो पहला कारण है वह है – अधिष्ठान। अधिष्ठान का अर्थ होता है आधार। श्री क्षत्रिय युवक संघ के लिए समाज ही अधिष्ठान हैं अर्थात समाज हमारा आधार, हमारा कार्यक्षेत्र है। जिस समाज में हम कार्य करना चाहते हैं उसकी स्थिति क्या है उसे हमें जान लेना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति, पशु अथवा समाज मृत हो तो वह कुछ भी नहीं कर सकता, उस पर किए गए सभी उपाय व्यर्थ जाएंगे। लेकिन यदि कोई समाज जीवित है तो उसमें कार्य करने का अर्थ बनता है। हमारे समाज की दशा और दिशा क्या है, उसकी व्याख्या श्री क्षत्रिय युवक संघ द्वारा यहां शिविर में की जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि इस समाज का कुछ नहीं हो सकता, वहीं कुछ लोग कहते हैं कि हम समाज का उत्थान कर रहे हैं। श्री क्षत्रिय युवक संघ इन दोनों प्रकार की बातों से सहमत नहीं है। पूज्य तनसिंह जी ने समाज को मां का स्थान दिया है और मां का उत्थान नहीं किया जाता अपितु सेवा की जाती है और वह सेवा भी उपकार भाव से नहीं बल्कि अपने दायित्व निर्वहन के भाव से की जाती है। उपरोक्त बातें श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर ने शिविर के पांचवे दिन 23 मई 2022 को अपने प्रभात संदेश में कही। शिविर के पांचवे दिन 'मेरी साधना’ पुस्तक पर चर्चा के साथ अर्थबोध कार्यक्रम के दौरान पूज्य तनसिंह जी रचित सहगीत ’हंसती है जग की होनी जो’ के भावार्थ पर चर्चा की गई। बौद्धिक सत्र में ’जीवित समाज के लक्षण’ विषय पर प्रवचन हुआ। #ShriKYS