श्री भगवानसिंह रोलसाहबसर, चतुर्थ संघ प्रमुख

संघ के चतुर्थ संघ प्रमुख माननीय भगवानसिंह रोलसाहबसर का जन्म 2 फरवरी 1944 को सीकर जिले की फतेहपुर तहसील के रोलसाहबसर गांव में हुआ। आप पिता श्री मेघसिंहजी एवं माताजी श्रीमती गोम कंवर की पांचवीं संतान हैं। आपके जन्म के कुछ दिनों पूर्व ही पिताजी का देहावसान हो गया। 1955 तक गांव से ही प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण कर 1960 में चमड़िया काॅलेज फतेहपुर से मैट्रिक व रुईया काॅलेज रामगढ शेखावाटी से प्री युनिवर्सिटी की। 1961 में लोहिया काॅलेज चुरु में प्रवेश लिया। आपका पहला शिविर 1961 में रतनगढ़ में आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर था। उसी समय पूज्य तनसिंह जी से संपर्क हुआ एवं उनके आदेश पर चुरु छोड़कर आगे के अध्ययन के लिए जयपुर पधारे। 1963 में रतनगढ़ में ही आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के बाद आप संघ के एक समर्पित स्वयंसेवक के रुप में कर्मशील हुए। जयपुर के राजपूत छात्रावास की शाखा का दायित्व संभाला और यहीं रहते हुए राजस्थान काॅलेज से स्नातक किया। 1964-65 में पूज्य तनसिंह जी के सान्निध्य में दिल्ली रहने लगे जब वे सांसद थे। 1967 में पूज्य तनसिंह जी ने सिवाना (बाड़मेर) में व्यवसाय प्रारंभ किया तो उनके प्रथम सहयोगी के रुप में साथ रहने लगे। सिवाना के ठाकुर तेजसिंह जी की सुपुत्री से इसी दौरान आपका विवाह हुआ। यहीं पूज्य तनसिंह जी एवं पूज्य नारायणसिंह जी का निकट सान्निध्य, सामीप्य एवं मार्गदर्शन मिलता रहा। दिसंबर 1979 में पूज्य तनसिंह जी के देहावसान के उपरांत पूज्य नारायणसिंह जी में तनसिंह जी के ही स्वरुप का दर्शन पाकर निरंतर सान्निध्य पाते रहे। पूज्य नारायण सिंह जी के जीवन में यौगिक अनुभव प्रकट होने लगे और ज्यों ज्यों वे भौतिक रुप से संघ कार्य से अलग रहने लगे त्यों त्यों आप पर दायित्व आता रहा। अनौपचारिक रुप से संघ की सभी गतिविधियों के संचालन का दायित्व आप पर आ गया। अक्टूबर 1989 में पूज्य नारायणसिंह जी के देहावसान के बाद संघप्रमुख का गहन दायित्व आप पर आया। एक तरफ पूज्य तनसिंह जी व पूज्य नारायणसिंह जी के वरदहस्त का भौतिक अभाव था वहीं 28 वर्षों तक उनके सामीप्य एवं सान्निध्य का अनुभव था। संघप्रमुख बनते ही राजस्थान के पूर्वी छोर से गुजरात के पश्चिमी छोर स्थित समुद्रतट तक संघ के हर नये पुराने स्वयंसेवक से व्यक्तिगत संपर्क साधने के लिए यात्राएं की। प्रशिक्षण शिविरों एवं शाखाओं की संख्या में आशातीत वृद्धि होने लगी। संघ के स्वर्ण जयंती के दिन 22 दिसंबर 1996 को संघ के वृहद स्वरुप का संसार को दर्शन करवाया। अब तक पुरुष वर्ग तक सीमित संघ महिलाओं व बालिकाओं तक पहुंचा। बालिकाओं के भी प्रशिक्षण शिविर लगने लगे। इसके साथ ही संघ का परिवारों में प्रवेश हुआ, दंपति शिविर लगने लगे। बड़े-बड़े समारोहों के रुप में पूज्य तनसिंह जी का पार्थिव स्वरुप श्री क्षत्रिय युवक संघ प्रकट होने लगा। जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर, कुचामन एवं गुजरात के सुरेन्द्रनगर में संघ के स्थायी कार्यालय बने। बाड़मेर में संघ का एक आदर्श शिविर स्थल ‘आलोक आश्रम‘ के रुप में विकसित हुआ। सीकर में बालिका शिक्षा का नया प्रकल्प ‘श्री दुर्गा महिला विकास संस्थान‘ प्रारंभ हुआ। संघ का विस्तार क्षेत्र गुजरात व राजस्थान से बाहर निकलकर महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के साथ साथ सुदूर दक्षिण के राज्यों तक विस्तारित हुआ। जून 2020 तक आप संघ के कुल 330 शिविरों में शामिल हो चुके हैं। संघ के स्वरुप के कारण समाज भी संघ से विभिन्न प्रकार की अपेक्षाएं करने लगा। उन अपेक्षाओं को समझा एवं तद्नुसार प्रयास प्रारंभ किए। राजनीति में समाज के लोगों के संरक्षक की भूमिका में उभरे वहीं समाज के राजनीतिज्ञों को संस्थागत रुप से समाज के आम नागरिकों से जोड़ने का प्रयास ‘श्री प्रताप फाउण्डेशन‘ के रुप में गतिमान है। इसके अलावा भी समाज के विभिन्न वर्गों की अपेक्षाओं को समझकर उन्हें संघ की मूल धारा से जोड़ने के अनेक नवीन प्रयास निरंतर जारी हैं। राष्ट्र की विभिन्न अग्रणी सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से संपर्क साधकर उनमें अपने व्यक्तित्व के बल पर संघ की छाप छोड़ रहे हैं। इसी बीच आपका संपर्क ‘यथार्थ गीता‘ के प्रणेता स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज से हुआ एवं उनके मार्गदर्शन में आध्यात्म का वास्तविक स्वरुप अपने साथियों को समझाकर उस मार्ग पर आरुढ कर रहे हैं। भारत की पूरी पश्चिमी सीमा से लेकर पूर्व में कलकत्ता तक एवं सुदूर दक्षिण तक अपने संपर्कों के माध्यम से पूज्य स्वामी जी के संदेश को पहुंचा रहे हैं। इस प्रकार 1989 से ही लगातार श्री क्षत्रिय युवक संघ के आदर्श नेतृत्व के रुप में संपूर्ण समाज को दिशा देने के लिए अथक परिश्रम करने वाले माननीय भगवानसिंह जी आज अपने प्रत्येक सहयोगी के लिए अनासक्त एवं निर्विकार मार्गदर्शक बनकर मार्गदर्शन कर रहे हैं और उन्हें अंगुली पकङकर जीवन लक्ष्य की ओर खींच रहे हैं। 4 जुलाई 2021 को आपने श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक व मार्गदर्शक की भूमिका अंगीकार करते हुए माननीय श्री लक्ष्मण सिंह बैण्यांकाबास को संघप्रमुख का औपचारिक दायित्व सौंपा।