इतिहास के अध्ययन से पूज्य तनसिंह जी की हमारे महान पूर्वजों के प्रति जो श्रद्वा, कृतज्ञता और भक्ति उमड़ी- उसे भाषा का सहारा लेकर अभिव्यक्ति प्रदान करने का प्रयत्न है यह पुस्तक। पूज्य तनसिंह जी ने इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि ये मेरे एकांत में बहाए हुए आंसू हैं जिनकी कीमत संवेदनशील व्यक्ति के सामने बहुमूल्य है और भावना रहित व्यक्ति के सामने निरा पागलपन। इस पुस्तक के 17 अध्यायों में ध्रुव से लेकर मध्यकालीन इतिहास तक के महान पात्रों को पूज्य श्री की शब्दांजलि हैं वहीं आगे के तीन अध्यायों में पतनशील वर्तमान का व उसकी परिणति का चित्रण है। अंतिम अवतरण पूज्य तनसिंह जी का स्वप्न है जो संघ के रुप में प्रकट हुआ है। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 1960 में प्रकाशित हुआ।