राजस्थानी साहित्य में वीर रस की प्रधानता के साथ साथ श्रृंगार, करुण, वात्सल्य आदि रसों में भी प्रचूर साहित्य उपलब्ध है। पूज्य तनसिंह जी ने अपने अध्ययन काल में पिलानी में रहते राजस्थानी भाषा के करुण रस प्रधान दोहों और सोरठों का संकलन किया जिन्हें ‘पिछोला‘ कहा जाता है। मृत्यु के उपरांत मृतात्मा के प्रति उमड़ते हुए उद्गारों के काव्य रुप को ‘पिछोला‘ कहा जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही ‘पिछोलों‘ का संकलन कर 1945 में उसे प्रकाशित किया गया।