अंतरावलोकन स्वयं एक साधना है – संरक्षक श्री
(उच्च प्रशिक्षण शिविर का चतुर्थ दिन) भगवान के अस्तित्व के बारे में दो मान्यताएं हैं, जो उस अस्तित्व को स्वीकार करते हैं उनको आस्तिक कहते हैं और जो स्वीकार नहीं करते उन्हें हम नास्तिक कहते हैं। आस्तिक लोग जो उपासना करते हैं इस संसार में, वह भी दो प्रकार की कहलाई जाती है - निर्गुण साधना और सगुण साधना। निर्गुण साधना का सामान्य अर्थ है बिना मूर्ति के, बिना कोई प्रतीक के हृदय में परमेश्वर का ध्यान करते हुए उपासना करना। जो ऐसा नहीं कर पाते वे प्रतीक का सहारा लेते हैं चाहे वह मूर्ति हो, चिह्न हो या कोई पुस्तक हो। हम भी श्री क्षत्रिय युवक संघ में दो प्रकार की साधना करते हैं, प्रथमतः हम प्रतीक पूजक हैं। हमारे ध्येय क्षात्रधर्म के लिए हमने केसरिया ध्वज को प्रतीक माना है जो यहां रात-दिन फहरा रहा है और देख रहा है कि हमारे जीवन में कहां अच्छे कदम उठ रहे हैं और कहां हमारी साधना भंग हो रही है। यह हमारे ईश्वर का प्रतीक भी है, क्षात्रधर्म का प्रतीक भी है, इसको सदैव स्मरण करते हुए स्वतः हमारा मस्तक झुक जाना चाहिए। दूसरी हम जो उपासना कर रहे हैं वह अंतःकरण की साधना है जो बाहर दिखाई नहीं देती। इस आंतरिक साधना में हम स्वनिर्माण के उद्देश्य से अंतरावलोकन करते रहते हैं, यह स्वयं एक साधना है। उपरोक्त संदेश माननीय संरक्षक श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर ने आलोक आश्रम, बाड़मेर में चल रहे उच्च प्रशिक्षण शिविर के चौथे दिन 22 मई, 2022 को अपने प्रभात संदेश में दिया। शिविर में सामाश्या के अंतर्गत श्रद्धेय आयुवान सिंह जी की पुस्तक 'मेरी साधना' पर चर्चा की जा रही है। अर्थबोध में पूज्य तनसिंह जी रचित सहगीत 'मेरा मस्तक झुक झुक जाय' का भावार्थ किया गया। बौद्धिक सत्र में ध्वज की महत्ता, उसके स्वरूप, उसके प्रति सम्मान प्रकटीकरण आदि के संबंध में जानकारी दी गई। #ShriKYS