अलक्षित सौन्दर्य को देखें
"दूसरों के दोषों को देखना एक चारित्रिक दोष है, जिससे स्वयंसेवक को यत्नपूर्वक बचना चाहिए| हमारे स्वयं के भीतर और बाहर संसार में भी, कितना ही सौन्दर्य और श्रेष्ठताएँ अलक्षित पड़े है| स्वयंसेवक को अपनी दृष्टि को इन्ही श्रेष्ठताओं पर केंद्रित करके अपनी चिन्तन धारा को मोड़ना चाहिए| अभ्यास द्वारा सुजात्मक दुर्बलताओं यथा - आत्मप्रदर्शन, काम, हँसी आदि पर विजय प्राप्त की जा सकती है| वही अभ्यास हमें यहाँ पर करवाया जा रहा है|" उपरोक्त बातें श्री क्षत्रिय युवक संघ के संचालन प्रमुख श्री महावीर सिंह सरवड़ी ने पुष्कर में चल रहे उच्च प्रशिक्षण शिविर के छठे दिन स्वयंसेवकों को समझाई| वे 'साधक की समस्याएँ' पुस्तक पर चर्चा कर रहे थे| बौद्धिक प्रवचन के दौरान श्री प्रेम सिंह रणधा ने बताया कि अनुशाशन ही वह आधार है जिस पर दिव्य ज्ञान का अवतरन हो सकता है| स्वयंसेवक का अनुशाषित होना जागृति की और पहला कदम है|