शाखा क्या है

"संघ की सामूहिक संस्कारमयी कर्म प्रणाली के दैनिक अभ्यास का कार्यक्रम है शाखा"

परिभाषा – शाखा श्री क्षत्रिय युवक संघ के शिक्षण का आधारभूत अंग है। इसमें प्रतिदिन एक निश्चित स्थान एवं समय पर एक घंटे के लिए एकत्रित होकर संघ के स्वयंसेवक गीतोक्त अभ्यास एवं वैराग्य की प्रणाली द्वारा संघ साधना का अभ्यास करते हैं। इस अभ्यास से संघदर्शन उनके जीवन में धीरे-धीरे मूर्त रूप लेता हुआ आकार धारण करता है। बालकों, बालिकाओं, प्रौढ़ों आदि सभी वर्गों के लिए लगने वाली इन शाखाओं में नियमितता एवं निरंतरता ही मुख्य है।

 

 

घटक/आयाम – एक आदर्श शाखा में स्वयंसेवक के शारीरिक, मानसिक, वैचारिक एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व के गठन हेतु निम्न घटकों को शामिल किया जाता है:-
(1) ध्वज प्रणाम (2) प्रार्थना (3) सहगीत (4) खेल एवं व्यायाम (5) चर्चा (6) संख्या (7) मंत्र

 

श्रेणियां – वर्तमान में शाखा की निम्न श्रेणियां प्रचलन में हैं-
(1) मैदानी – यह शाखा का मुख्य स्वरूप है। इसमें स्वयंसेवक किसी खुले मैदान में एकत्र हो उपर्युक्त सभी आयामों के माध्यम से अभ्यास करते हैं।
(2) घरेलू – परिवारों में संघ चर्चा एवं सांघिक साधना की निरंतरता के लिए घरेलू शाखा लगाई जाती है। इसमें परिवार के सदस्य निश्चित समय पर घर में ही उपर्युक्त घटकों में जितने संभव हो, उनका अभ्यास करते हैं।
(3) वर्चुअल – सूचना तकनीक के साधनों का उपयोग करते हुए निश्चित समय पर लगाई जाने वाली यह शाखा उन लोगों के लिए है जिनका भौतिक रूप से मिलना प्रतिदिन संभव नहीं हो पाता।
(4) साप्ताहिक – शाखा का मुख्य स्वरूप दैनिक ही है लेकिन अनेक शहरों में रहने वाले स्वयंसेवक दैनिक शाखाओं के साथ-साथ सप्ताह में एक निश्चित दिन, समय एवं स्थान पर मिलकर एक साथ साधना विषयक चर्चा करते हैं, उन्हें साप्ताहिक शाखा कहा जाता है।

 

संख्या – शाखा में संख्या की कोई बाध्यता नहीं है। एक व्यक्ति भी शाखा के आयामों/घटकों का पालन करते हुए नियमित दैनिक शाखा लगाकर रिपोर्ट भेजता है तो उसे भी शाखा माना जाता है। सामान्यतया यदि शाखा में 25 से अधिक नियमित संख्या रहती है तो शिविर की तरह घट, पृथक आदि बांट कर अभ्यास किया जाता है।

 

दायित्व – शाखाओं को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु प्रत्येक शाखा में तीन सहयोगी होते हैं – शाखा प्रमुख, शिक्षण प्रमुख और विस्तार प्रमुख।
शाखा प्रमुख का दायित्व शाखा के लिए पिता की तरह है जो शिक्षण प्रमुख को आवश्यक दिशा निर्देशों के साथ शाखा को सम्पूर्ण संरक्षण प्रदान करता है। जबकि शिक्षण प्रमुख प्रतिदिन शाखा में उपस्थित रहकर पहले से बनाई हुई योजना के अनुसार शिक्षण का दायित्व निभाता है। विस्तार प्रमुख अनियमित और सम्भावित स्वयंसेवकों से सम्पर्क कर शाखा की संख्या बढ़ाने का कार्य करता है।