जो जितना देता है, उतना ही श्रेष्ठ – रोलसाहबसर
(उच्च प्रशिक्षण शिविर का सातवां दिन) "भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठाः प्राणिनां बुद्धिजीविनः। बुद्धिमत्सु नराः श्रेष्ठा नरेषु क्षत्रियाः स्मृताः।।" यह मनुस्मृति का श्लोक है। जितने भी प्राणी हैं उनको आध्यात्मिक भाषा में भूत कहा जाता है और जो प्राणी नहीं है पर इस संसार में हैं और धीरे-धीरे विकास करते हैं, जैसे पहाड़, रजकण आदि उन्हें भी भूत कहा जाता है। इनसे जो प्राणवान हैं उन्हें श्रेष्ठ कहा गया है। प्राणवानों में बुद्धिमान को, बुद्धिमानों में मनुष्य को और मनुष्यों में क्षत्रिय को श्रेष्ठ बताया है। हम इस उच्च प्रशिक्षण शिविर में यह समझने के लिए आए हैं कि कोई श्रेष्ठ क्यों है? यह पत्थर, यह रजकण हमसे कुछ भी लेते नहीं हैं लेकिन देते बहुत कुछ हैं। उनसे श्रेष्ठ यह पेड़-पौधे हैं जो हमसे कुछ ना लेकर हमें छाया, फल और ऑक्सीजन देते हैं। जो जितना देता है उतना ही श्रेष्ठ है। जो इसे समझता है हम उसे उत्तरदायी कहते हैं। शिविर में हम यह समझ लें कि कौम के प्रति, अपने गांव के प्रति, अध्यापकों, माता-पिता, समाज, राष्ट्र और इंसानियत के प्रति हमारा क्या दायित्व है और यह चिंतन करें कि क्या हम इसे पूरा कर रहे हैं? जो अपना दायित्व नहीं निभाता है, वह कृतघ्न कहलाता है। हमारे लिए जिस किसी ने जो कुछ भी किया है उसका ऋण कैसे उतारें, यह चिंतन यदि मनुष्य का नहीं है तो वह श्रेष्ठ नहीं है। परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वे हमें धैर्य, शक्ति और साहस दें जिससे हम समाज, राष्ट्र और मानवता के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर सकें। उपरोक्त बात श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक माननीय श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर ने उच्च प्रशिक्षण शिविर के सातवें दिन 25 मई को अपने प्रभात संदेश में कही। वरिष्ठ स्वयंसेवक माननीय महावीर सिंह जी सरवडी द्वारा ’शिक्षक की समस्याएं’ पुस्तक पर चर्चा के दौरान श्री क्षत्रिय युवक संघ में शिक्षण के दौरान आने वाली समस्याओं एवं उनके समाधान के बारे में बताया गया। अर्थबोध में पूज्य तनसिंह जी रचित ’चिता जल रही है’ सहगीत का सरलार्थ किया गया। बौद्धिक प्रवचन में ’उत्तरदायित्व’ विषय पर प्रवचन दिया गया। #ShriKYS