हमारा जीवित समाज
"सांस्कृतिक मान्यताएँ, संवेदना और पीड़ा, स्वधर्म की मान्यता, मान बिन्दुओं के प्रति सम्मान, जिजीविषा, प्रतिशोध की भावना आदि जीवित समाज के लक्षण है| क्षत्रिय युवक संघ ने भली भांति परीक्षण करके यह निश्चित कर लिया है कि हमारा समाज जीवित समाज है| यद्यपि यह रुग्णावस्था में है अत: सर्वप्रथम आवश्यकता इसकी सेवा करने की तथा परहेज द्वारा इसे संबल बनाने की है| श्री क्षत्रिय युवक संघ इसी कार्य में निरंतर लगा हुआ है|" यह बातें श्री महिपाल सिंह चूली ने पुष्कर में आयोजित हो रहे संघ के उच्च प्रशिक्षण शिविर के पाँचवें दिन बौद्धिक प्रवचन में कही| 'मेरी साधना' पुस्तक पर चर्चा में संचालन प्रमुख श्री महावीर सिंह सरवड़ी ने बताया की क्षात्र धर्म कर्म ज्ञान और भक्ति का संगम है| लौकिक और आध्यात्मिक शक्तियों का समन्वय केंद्र और सर्व कल्याण का मूल केंद्र भी क्षात्र धर्म ही है जिसके पालन का अनुव्रतीय अभ्यास हम यहाँ शिविर में कर रहे है|