उत्तर- संघ से जुड़ने का माध्यम संघ के प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा बनना है। आप अपने निकट लगने वाले संघ के शिविर या शाखा में शामिल होकर संघ से जुड़ सकते हैं।
उत्तर- संघ किसी प्रकार का सदस्यता अभियान नहीं चलाता और ना ही संघ में सदस्य बनाने की कोई औपचारिक प्रक्रिया है। संघ सभी राजपूतों को अपना सदस्य मानता है और जो संघ के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल हो जाते हैं, वे संघ कार्य में सहयोगी बन जाते हैं।
उत्तर- प्रारंभ में संघ केवल उन्हीं लोगों में काम करने को प्राथमिकता देता है जिनकी पूर्वज परंपरा एवं पारिवारिक वातावरण की परंपरा संघ शिक्षण के अनुकूल रही हो, इसलिए राजपूतों में प्राथमिकता से काम करता है। लेकिन अन्य वर्गों के लोगों के लिए संघ में कोई प्रतिबंध नहीं है, जो भी क्षत्रियत्व के गुणों को अंगीकार करने के लिए संघ के प्रशिक्षण कार्य में शामिल होना चाहता है, संघ उसका स्वागत करता है।
उत्तर- इसके लिए आपको गतिविधियां टैग के शाखा सबटैग को देखना चाहिए एवं उसमें दिए गए शाखा कार्यालय के संपर्क सूत्र पर संपर्क करना चाहिए।
उत्तर- संगठनात्मक स्वरुप सबटैग में संघ के दायित्वाधीन स्वयंसेवकों के नम्बर हैं, आप अपने से संबंधित क्षेत्र के सहयोगी से संपर्क करें। यदि आप किसी नवीन क्षेत्र से हैं तो शिविर कार्यालय या केन्द्रीय कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। साथ ही गतिविधियां टैग के सब टैग ‘शिविर‘ में शिविरों संबंधी विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
उत्तर- स्थानीय समाज बंधु आपसी सहयोग से शिविरार्थियों के भोजन आदि की व्यवस्था कर देते हैं। आने जाने का किराया आदि खर्चे शिविरार्थी स्वयं वहन करते हैं।
उत्तर- महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए भी संघ के प्रशिक्षण शिविर आयोजित होते हैं। पूरे परिवार के लिए पारिवारिक शिविर एवं दंपति शिविर भी आयोजित होते हैं। इन सब में हमारी बालिकाओं एवं महिलाओं को आदर्श पुत्री, पत्नी, माता आदि के रुप में आदर्श क्षत्राणी बनने के लिए अपेक्षित विशेषताओं का अभ्यास करवाया जाता है। इसके लिए संघ का अलग से महिला विभाग कार्यरत है।
उत्तर- जून 2020 तक संघ के कुल 3,054 शिविर हो चुके हैं। इनमें से 2,518 बालक/ युवक शिविर, 314 बालिका शिविर, 16 बाल शिविर, 48 दम्पति शिविर एवं 156 विशेष शिविर हैं।
उत्तर- संघ में बालिका शिविर अप्रेल 1995 से शुरु हुए। पहला बालिका शिविर 14 अप्रेल से 17 अप्रेल 1995 तक धन्धुका (गुजरात) में हुआ। राजस्थान में पहला बालिका शिविर 4 जून से 7 जून 1995 तक ’संघशक्ति’ जयपुर में हुआ।
उत्तर- श्री क्षत्रिय युवक संघ का मुख्य कार्य अपनी अभ्यास एवं वैराग्य आधारित सामूहिक संस्कारमयी कर्म प्रणाली द्वारा राजपूत युवाओं को क्षत्रिय केे गुणों का प्रशिक्षण देना है, उनमें स्वमूल्यांकन की क्षमता विकसित करना है एवं उनके व्यक्तित्व को क्षत्रिय के रुप में विकसित करने में सहायक बनना है।