पूज्य तनसिंह जी ने अपनी अनुभूतियों के भावातिरेक को काव्यात्मक स्वरुप प्रदान कर अनेकों गीतों की रचना की। इन गीतों में कर्म, विचार एवं भावना की त्रिवेणी का समन्वय है। आत्मघाती निराशा के बीच आशा का संचार...
पढ़ेंसंघ के शिक्षण आदेशों, सहयोगियों एवं स्वयंसेवकों के उत्तरदायित्वों, शिविर व्यवस्थापकों की मर्यादाओं, सामान्य दिनचर्या, सामाजिक बुराईयों आदि के सम्बन्ध में संघ के सामान्य निर्देशों का संकलन इस पुस्तक मे...
पढ़ेंपूज्य तनसिंह जी ने दिसंबर 1950 में चित्तौड़गढ़ के दर्शन किए और दुर्ग से मौन संवाद को लेखनी के माध्यम से ‘वैरागी चित्तौड़‘ के रुप में लिपिबद्ध किया। फरवरी 1958 में क्षिप्रा के तीर स्थित दुर्गाबाबा के स्मा...
पढ़ेंइतिहास के अध्ययन से पूज्य तनसिंह जी की हमारे महान पूर्वजों के प्रति जो श्रद्वा, कृतज्ञता और भक्ति उमड़ी- उसे भाषा का सहारा लेकर अभिव्यक्ति प्रदान करने का प्रयत्न है यह पुस्तक। पूज्य तनसिंह जी ने इस पुस...
पढ़ेंराजस्थानी साहित्य में वीर रस की प्रधानता के साथ साथ श्रृंगार, करुण, वात्सल्य आदि रसों में भी प्रचूर साहित्य उपलब्ध है। पूज्य तनसिंह जी ने अपने अध्ययन काल में पिलानी में रहते राजस्थानी भाषा के करुण रस ...
पढ़ेंजेल और विद्यालय शिक्षण के स्थान होते हैं। सिद्धांततः जेल सजा की जगह नहीं बल्कि बिगडे़ हुए इंसानों को सुधारने की जगह मानी जाती है। इसलिए विद्यालयों में शिक्षकों व जेल में जेल अधिकारियों का राष्ट्र निर्...
पढ़ेंअपनी संपूर्ण लगन और निष्ठा से जीवन भर श्री क्षत्रिय युवक संघ द्वारा प्रदत्त तपस्या मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के लिए परवाह करने योग्य केवल उसका उद्देश्य और उसका संकल्प ही रह जाता है। इससे असंबद्ध अन्य...
पढ़ेंकिसी भी कार्य का मुल्यांकन एक पक्ष से ही देखने पर नहीं किया जा सकता। उसके लिए उसके सभी पहलुओं पर पूर्ण विचार किया जाए और उसको नजदीक से स्वयं देखा जाए। विरोध के एक पक्षीय दृष्टिकोण से देखकर संघ के बार...
पढ़ेंपूज्य तनसिंह जी ने अपना जीवन देकर जीवन खरीदा। वे सदैव ऐसे पात्रों की खोज में रहे जो समाज में जीवन जुटा सकें, गौरव जुटा सकें और सम्मान को जन साधारण में बांट सकें। उन्होंने जीवन भर ऐसे कुटुम्ब के निर्मा...
पढ़ेंपूज्य तनसिंह जी नित्य अपनी डायरी लिखते थे। सन् 1964 के बाद की उनकी डायरियां सुरक्षित रखी हुई हैं। डायरी लेखन की उनकी शैली रोचक रही है। उन्होंने जो कुछ देखा, सुना, सोचा, परखा, अनुभव किया उसे बड़ी रोचक श...
पढ़ेंकेवल उत्तेजना से काम न चलाकर प्राकृतिक चिकित्सा के आधार पर रुग्ण जाति व समाज को उसका नैसर्गिक बल प्रदान करने के लिए एक व्यवहारिक शिक्षण एवं मार्गदर्शन के लिए यह पुस्तक लिखी गई है। श्री क्षत्रिय युवक स...
पढ़ेंसमाज सेवा परमार्थपूर्ण कार्य है जिसमें त्याग की भावना सात्विक होती है लेकिन कार्य प्रारंभ करने से पूर्व उसके सभी पहलुओं पर विचार न करने के कारण एक समाज सेवक में भी अर्जुन की भांति कायरता घुस जाती है। ...
पढ़ेंयह पुस्तक पूज्य तनसिंह जी की अनुभूतियों का निचोड़ है। उन अनुभूतियों को मात्र सौ छोटे छोटे अवतरणों में संजोकर बहुत ही बड़ी बात को सीमित शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। सांघिक साधना से किस प्रकार जीवात्म...
पढ़ेंव्यष्टि (व्यक्ति), समष्टि (समाज या संसार) और परमेष्टि (परमेश्वर) के क्रम में साधनारत व्यक्ति के साधनागत जीवन में आने वाली मानसिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं के स्वरुप, कारण एवं निवारण का विवेचन है इस पुस्...
पढ़ेंपरमेश्वर अपनी प्रकृति के माध्यम से लोक शिक्षा का काम युगों से संपादित करता चला आ रहा है। उनके द्वारा रचित परिस्थितियों में लोक का भविष्य निश्चित है लेकिन मानव गुरु अपने पुरुषार्थ के सहारे कुछ कृत्रिम ...
पढ़ेंभारतीय मनीषियों द्वारा संस्कारों का महत्व बताते हुए सम्पूर्ण जीवन के लिए कुछ औपचारिक रुप से चरित्र गठन किये जाने वाले संस्कार निश्चित किये गये। श्री क्षत्रिय युवक संघ का काम भी संस्कार निर्माण है। प्र...
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